क्या है हरेला (Harela Festival )और क्यों मनाया जाता है? उत्तराखंड का एक प्रमुख त्यौहार हरेला

हरेला (Harela Festival )

आजकल की युवा पीढ़ी को शायद ही पता होगा उत्तराखण्ड के प्रमुख त्यौहार हरेला के बारे मे क्यूकि कुछ ऐसे त्यौहार होते है जिनके बारे मे लोग कम जानते है। बस घर वालो के कहने पर लोग उसे मानते है तो आज हम जानेगे इस प्रमुख त्यौहार हरेला के बारे मे ये क्या है और क्यों मनाया जाता है। 

हरेला एक हिंदू त्यौहार है जो उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र के मूल निवासी द्वारा मनाया जाता है।हरेला त्यौहार साल  में तीन बार आता है। 

पहला  चैत्र मास की - इस दिन हरेला प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी के दिन को काटा जाता है।

दुसरा  श्रावण मास  - यह पर्व में सावन लगने से नौ दिन पहले हरेले को आषाढ़ में बो दिया जाता है और दस दिन के बाद श्रावण के प्रथम दिन में ही काट दिया जाता है।

तीसरा आश्विन मास में - आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन ही बो दिया जाता है और दशहरा के दिन काट  दिया जाता है।(इस आश्विन मास  वाले में दुर्गा भी बनाई जाती है और कही कही पुतले भी मनाये जाते है )

उत्तराखण्ड में ज्यादातर श्रावण मास में होने वाले हरेला को ही अधिक महत्व दिया जाता है! क्योंकि श्रावण मास भगवान शंकर जी को अधिक प्रिय है। श्रावण मास में होने वाले हरेले के दिन शुद्ध मिट्टी से प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके शिव-परिवार की प्रतिमाओं को बनाया जाता है और भगवान शिव-परिवार की मूर्तियां को घर के मंदिर में स्थापित किया जाता है जिन्हें हम डिकारे भी कहते है। और इस दिन उनकी पूजा की जाती है। घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला को बोया व काटा जाता है! और ऐसा मना जाता है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी और साथ में  भगवान से फसल अच्छी होने की कामना करते है। 

उत्तराखण्ड  के निवासीनौ दिन पहले से ही आषाढ़ में हरेले को बोने के लिए थाली, गमला या टोकरी का उपयोग करते है  इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों और अन्य 5 या 7 अलग अलग प्रकार के बीजों को उस टोकरी या थाली में भरी मिट्टी में बो देते है। और हर दिन रोज सुबह इसमे नौ दिनों तक पानी डालते रहते हैं।और दसवें दिन तक ये उग जाता है और फिर इसे काटा जाता है।

दसवै दिन हरेले को काटने के बाद  घर की बुजुर्ग महिला और सदस्य द्वारा तिलक, चन्दन, अक्षत से इस मंत्र द्वारा “रोग, शोक निवारणार्थ, प्राण रक्षक वनस्पते, इदा गच्छ नमस्तेस्तु हर देव नमोस्तुते” भगवान  को अर्पित करते है, इसके बाद घर की बुजुर्ग महिला सभी सदस्यों को ये कुमाऊँनी गीत बोलकर उनके सबसे पहले पैरो, फिर घुटने, फिर कन्धे और अन्त मेंसिर में रख देते है।

हरेला गीत

ये  वो कुमाऊँनी गीत है जब घर की  बुजुर्ग महिला हरेला को लगाती है तो इस गीत का अनुसरण करती है। 
“जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,

इस गीत का अर्थ  है 
"तुम जीवनपथ पर विजयी बनो, जागृत बने रहो, समृद्ध बनो, तरक्की करो, दूब घास की तरह तुम्हारी जड़ सदा हरी रहे, बेर के पेड़ की तरह तुम्हारा परिवार फूले और फले। जब तक कि हिमालय में बर्फ है, गंगा में पानी है, तब तक ये शुभ दिन, मास तुम्हारे जीवन में आते रहें। आकाश की तरह ऊंचे हो जाओ, धरती की तरह चौड़े बन जाओ, सियार की सी तुम्हारी बुद्धि होवे, शेर की तरह तुम में प्राणशक्ति हो।"

                                                         

हरेले की लम्बाई 3 से 5 या 6 इंच तक होती है और इनको ही हरेला कहा जाता है। और जैसा की हम जानते हैं की उत्तराखण्ड एक पहाड़ी इलाका है और पहाड़ों पर ही प्रभु भोलेनाथ का वास होता है। और भगवान शंकर के पहाड़ो में वास करने से हरेला का और अधिक महत्व हो जाता है।और इस दिन वृक्षारोपड़ भी किया जाता है। 

देवभूमि देवो की नगरी भी मानी जाती है और अपने तीर्थस्थलों और पर्यटन क्षेत्रों के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। यहाँ बहुत से देवी देवताओ का निवास भी है और यहाँ महादेव शिव की विशेष अनुकम्पा भी है और इस क्षेत्र में उनका वास हरिद्वार और ससुराल हिमालय दोनों होने के कारण यहां के लोगों में उनके प्रति विशेष श्रद्धा और आदर का भाव रहता है। इसलिये श्रावण मास के हरेले का महत्व भी इस क्षेत्र में विशेष ही होता है। 

इसी वजह से आजकल की भागादोड़ी जिन्दगी में उत्तराखण्ड के मूल निवासी आज भी प्रकृति से अपना जुड़ाव रखने में सफल रहे हैं। 

अगर आप भी उत्तराखण्ड से है और हरेले से आपकी कुछ यादे जुडी है तो प्लीज कमेंट में अपने विचार बताये और हर उत्तराखण्ड के लोगो तक इस  जानकारी तक जरूर सांझा करे खासकर आजकल की नई पीढ़ी। अपनी 
संस्कृति को आगे बढ़ाये।जय भारत 🇮🇳 जय  उत्तराखण्ड 😄🙏

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